Sunday, April 6, 2008

--- तडप ---

ऊनकी आवाज ने वो रन्गं भरदीया हे,
शुखे चेहेरेपे मुशकान आगया हे.

कलम अब हरदीन कुछ लीख राहा हे,
कागज शायेरी शे भर राहा हे.

दील महबत का कीताब बन गया हे,
जुबां प्यार का तराना गा रहा हे.

बन्द आखों शे ऊन्हे देखता रहेता हुं,
प्यार की कुछ बातें करता रहता हुं.

बारबार नाम ऊनका लेता रहता हुं,
कहीं किशीकी नजर ना लगजाये ,
खुदा शे दुआ मे मन्गता रह्ता हुं.

दील पे अब मेरा कोई जोर नहिं,
ऊनकु बतादे कोई,
ये दिवाना हे कोई चोर नहीं.

---X0X----

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