Sunday, April 6, 2008

ऊनकी चाहत.....

मुझे देनेकु हाथ मे लिये गुलाब वो रखती हें,
बुरी नजर शे रब बचाये, खुदा शे दुआ वो करती हे.

मे कहीं रुठ्नाजाऊ ये खयाल वो रखती हें,
चान्द से चेहेरे पे मुशकान वो लाती हें.

मे बेरगं ना हो जाऊ हररोज बातें करती हें,
खुशी हमशे रुठ्नाजाये ईश बात शे दरती हें.

तफें मे दील अपना ऊन्हो ने दीया हे,
साथ ऊशके वफाका वादा भि कीया हे,
कागज मे बारबार नाम मेरा लीखती हे,
मुझे देनेकु हाथ मे लिये गुलाब वो रखती हें....

इनतेजार मे मेरे वो सजती शवरती हें,
आईना शे हररोज वो पुछा करती हें,
मुशकुराके शखीवों शे ये सब वो कहती हें,
मुझे देनेकु हाथ मे लिये गुलाब वो रखती हें....

खबर हे हमें वो बेकरार हें,
मिलनेकी इनतेजार मे हम भी बेसबर हें,
ये सुनके चुपकेशे मुशकुराती रहती हें,
मुझे देनेकु हाथ मे लिये गुलाब वो रखती हें....

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