Thursday, July 31, 2008

))) तनहाई (((

बीते दिनों की बात जब याद आती है,
बेइमान अश्क आखों से गिर जाती है.

मेहफिल में तन्हा हुँ मै समझ जाता हुं,
पूछते हें लोग तो चुप रह जाता हुं.

उलझ के बातों मै दुर निकल जाता हुं,
रुकते ही कदम खुद को तन्हा पाता हुँ.

मायूस होके वापस में घर आ जाता हुँ,
लीपट के बिश्तर से फिर सो जाता हुँ.

सजा के कुछ सपने में बिस्तर में जाता हुँ,
खुलते ही आखं एक तस्वीर पाता हुँ.

तुम येँहीँ हो खुद को शम्झाता रहता हुँ,
खोलते ही दरवाजा खाली मकान पाता हुँ.

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Wednesday, July 30, 2008

***))))) दुरी (((((***

कभि सोचे नथे दुरी जालीम बन जायेगी,
कुछ पलकी खुशी के बद्ले अश्क दे जायेगी.

कागज ये बोल उठ्ती हें जब हम उश्शे बतें करते हें,
छोडे मेहेबुब कु दुर देखो ये हम से दील लगाते हें.

देखो हीम्मत कीताब की वो भी रुठ जाते हें,
कहते हें पागल हे ये कीयुं हम से नेंन मीलाते हें.

मख्मली शेज पे रात क्या गुजारुँ खाबों में जो तुम आजाती हो,
दीलाके याद वो पहेली रात आखों से निन्द चुरा ले जाती हो.

सज सवर के कुछ दुर तुम्हारे साथ नीकल जाता हुं,
देखता हुं मुड के जब मुशकुरा के रुक जाता हुं.

खयालों की दुनीया मे हुं जब समझ जाता हुं,
फीर अपनी मन्जील के वोर तन्हा नीकल जाता हुं.

ना मे तन्हा हुं ना साथ मेरे यार हें,
किस से करुं मे दील की बात,
वो तो सात समन्दर पार हें.

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Monday, April 7, 2008

((( महबत )))

मिलाहे ईक अनमोल रतन,
दील मे छुपाये रखता हुं,
नाम ऊशका सोफी हे,
दुनीयी से ये कहता हुँ.

दिल्ल मे हे प्यार ऊनका,
और आखं नशे मे टर हे,
कहते हें आशीक हे सोफीका,
दुनीयाका ईशे क्या डर हे.

बने क्या डुरी दिवार हमारा,
दुशमन क्या बने जमाना,
मिलन हे इकरोज मनजील जीश्का,
फिर दुरी से ऊसे क्या घबराना.

जी जायेगें महबत के साहारे,
अब गम की परवा किशी,
लेले चाहे जान जमाना,
अब मरनेकी डर किशे.

मुमकिन हे ईमतेहान लेगी जमाना,
फिरभी ये जजबात रखता हुं,
देगीं वो शाथ जीन्देगी भर,
दील मे ये येतबार रखता हुं.

Sunday, April 6, 2008

*) येक डर (*

ईयुं ना हमें दीलमे बिठावो,
खुशीशे आखं भर आती हे,
जब कभी में तनहा बेठता हुँ,
ये खुशी बहत रुलाती हे.

वादा तो करली साथ नीभानेका,
फिरभी मे शोचता रहता हुँ,
कभी दुरी दिवार ना बन जाये,
ईश बात शे डरता रहता हुँ.

खुशी ये पुछती रहती हे,
कियुं तु ऊदाश हे,
शाथ हुं मे तुम्हारे,
फिर कियुं बेआश हे.

में कहीं अश्क ना बनजाऊ,
ईश बात शे डरता हुँ,
मुश्कान बनके चेहेरे मे रहुं,
खुदाशे दुआ मे करता हुं.

लगेना नजर दुनीयाकी तुम्हे,
दिलमे छुपाये रखता हुं,
कोई मुजशे छीननाले तुम्हे,
ईश बात से डरता हुँ.

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ऊनकी चाहत.....

मुझे देनेकु हाथ मे लिये गुलाब वो रखती हें,
बुरी नजर शे रब बचाये, खुदा शे दुआ वो करती हे.

मे कहीं रुठ्नाजाऊ ये खयाल वो रखती हें,
चान्द से चेहेरे पे मुशकान वो लाती हें.

मे बेरगं ना हो जाऊ हररोज बातें करती हें,
खुशी हमशे रुठ्नाजाये ईश बात शे दरती हें.

तफें मे दील अपना ऊन्हो ने दीया हे,
साथ ऊशके वफाका वादा भि कीया हे,
कागज मे बारबार नाम मेरा लीखती हे,
मुझे देनेकु हाथ मे लिये गुलाब वो रखती हें....

इनतेजार मे मेरे वो सजती शवरती हें,
आईना शे हररोज वो पुछा करती हें,
मुशकुराके शखीवों शे ये सब वो कहती हें,
मुझे देनेकु हाथ मे लिये गुलाब वो रखती हें....

खबर हे हमें वो बेकरार हें,
मिलनेकी इनतेजार मे हम भी बेसबर हें,
ये सुनके चुपकेशे मुशकुराती रहती हें,
मुझे देनेकु हाथ मे लिये गुलाब वो रखती हें....

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--- तडप ---

ऊनकी आवाज ने वो रन्गं भरदीया हे,
शुखे चेहेरेपे मुशकान आगया हे.

कलम अब हरदीन कुछ लीख राहा हे,
कागज शायेरी शे भर राहा हे.

दील महबत का कीताब बन गया हे,
जुबां प्यार का तराना गा रहा हे.

बन्द आखों शे ऊन्हे देखता रहेता हुं,
प्यार की कुछ बातें करता रहता हुं.

बारबार नाम ऊनका लेता रहता हुं,
कहीं किशीकी नजर ना लगजाये ,
खुदा शे दुआ मे मन्गता रह्ता हुं.

दील पे अब मेरा कोई जोर नहिं,
ऊनकु बतादे कोई,
ये दिवाना हे कोई चोर नहीं.

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xxxx तमन्ना xxxx

चन्द बातें प्यार की ऊन्होने क्या शुनाई,
दिल मेने अपना ऊनके हाथोंमे थमाई.

लबोंपे ऊनका नाम बारबार आता हे,
दिल मेरा खुशी से झुम ऊठ्ता हे.

थामे दिल बेठा हुं कब मुलाकात होगी,
खुशी की वो लमहे और प्यार की बात होगी.

मिलती हें निगाहें जब ऊनकी निगाहों से,
बेकाबु जजबात जागता हे ईश अदाऔं शे.

चुपके शे कानों मे कुच वो कहजायेगीं,
मुमकीन हे ईजहारे महबत करजायेगीं.

दिल मे महबत का जजबा तो वो रखती हें,
जालीम दुनिया शाथ ना दे शायद,ईश बात से वो डरती हें.

माना जालीम हे दुनीया पर हम कम नहीं,
रोकले हमें कोई किशीमे वो दम नहीं.

जायेगें लेकर हम बारात शेहेरा शजा के,
लायेगें तुम्हें हम डोलीमे अपनी दुलहन बना के.

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